महाविद्यालय में अनुशासन स्थापित करने का दायित्व प्राचार्य का है वे यह अधिकार अनुशासनाधिकारी तथा अभ्य उपयुक्त व्यक्तियों को सौंप सकते हैं। इस सम्बन्ध में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं-
- इस महाविद्यालय के विद्यार्थियों को परस्पर एक दूसरे को किसी भी प्रकार आतंकित या पीड़ित नहीं करना चाहिये तथा उनमें एक दूसरे के प्रति सदैव सहयोग की भावना होनी चाहिये।
- इस महाविद्यालय में प्रत्येक शिक्षक अधिकारी अथवा अतिथि के प्रति हर विद्यार्थी को समादर की भावना रखनी चाहिए तथा किसी भी प्रकार उसकी मानहानि नहीं करनी चाहिये।
- ऐसी किसी क्रिया का सम्पादन जो इस महाविद्यालय की शान्ति और सुव्यवस्था में बाधा पहुंचाये या महाविद्यालय के सम्मान पर धक्का लगे, प्रत्येक विद्यार्थी के लिए वर्जित है।
- जाली हस्ताक्षर, झूठा बयान अथवा झूठा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना प्रत्येक विद्यार्थी के लिए वर्जित है। ऐसा होने पर आपराधिक कार्यवाही की जायेगी।
- महाविद्यालय में किसी अवांछित क्रिया-कलाप के विरुद्ध कार्यवाही विद्यार्थी को सीधे अपने हाथ में न लेकर उसकी रिपोर्ट प्राक्टर कार्यालय में करनी चाहिये।
- प्राचार्य की अनुमति के बिना किसी विद्यार्थी द्वारा महाविद्यालय के प्रांगण में भूख हड़ताल, सभा अथवा अन्य किसी प्रकार की हड़ताल का आश्रय लेना अनुशासन भंग करना ही नहीं, महाविद्यालय की सामान्य क्रिया कलाप में व्यवधान भी उत्पन्न करना है, जो एक अपराध है, जो किसी छात्र को नहीं करना चाहिये, अन्यथा इस अपराध के लिए सम्बद्ध छात्र का दण्ड स्वरूप महाविद्यालय से निष्कासित तक किया जा सकता है।
- महाविद्यालय में 6 माह से कम की अवधि तक विद्याअध्ययन करने वाले विद्यार्थी को अनुशासनाधिकारी का चरित्र प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता है।