हलधर ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशंस द्वारा संचालित समस्त शैक्षिक संस्थाओं के संस्थापक एवं प्रसिद्ध समाजसेवी स्व॰ बाबु सिंह का जन्म 5 सितम्बर सन् 1945 में रामनवमी के दिन बेर्रवां (सलवन) जनपद फतेहपुर में हुआ था। यध्यपि आपका जन्म स्थान जनपद फतेहपुर था परन्तु आपने अपना कर्मक्षेत्र जनपद कौशाम्बी को बनाया। आपकी शिक्षा-दीक्षा सनातन धर्म के संस्कारों के अनुरूप हुई और आपने अंग्रेजी और हिंदी का विशेष अध्ययन किया। चूँकि जनपद कौशाम्बी का पूरा क्षेत्र शैक्षिक रूप से अत्यंत पिछड़ा हुआ था तथा जनपद में स्थित विद्यालयों की संख्या आवश्यकता के अनुपात में बहुत कम थी। जिससे यहाँ के छात्रों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए मीलों दूर पैदल चलकर जाना पड़ता था। छात्राओं के अध्ययन हेतु 25-30 कि॰मी॰ तक विद्यालय का नितांत अभाव था। इन्ही परिश्थितियों को ध्यान में रखकर संथापक जी ने इस क्षेत्र में क्रमशः विभिन्न शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की। जिनमें प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा एवं व्यावसायिक शिक्षा तक की शिक्षा प्रदान की जाती है।
आपके जीवन का प्रारंभ से ही एक उद्देश्य रहा है “ज्ञान का प्रसार एवं अज्ञानता का अंत” आपकी सफलता का एक ही मूलमंत्र रहा है। “INTEREST, LABOUR AND COURAGE MAKES MAN FOURTUNATE” आपने इसी उद्देश्य की पूर्ति तथा जनकल्याण हेतु शैक्षिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़े हुए क्षेत्र कौशाम्बी को अपनी कर्मस्थली बना कर यहाँ विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना करके इस क्षेत्र को ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित करने का सतत् प्रयत्न किया है। आपने सर्वप्रथम 1 जुलाई सन् 1975 में जनपद कौशाम्बी में “हलधर विद्या मंदिर” के नाम से एक प्राथमिक पाठशाला स्थापित की, जो बाद में एक इंटर कॉलेज के रूप में विकसित हुई। तत्पश्चात संस्थापक महोदय ने अपनी कुशाग्र बुद्धि एवं दूरदर्शिता के बल पर जनपद कौशाम्बी में क्रमशः हलधर इंटर कॉलेज, अजुहा-कौशाम्बी, श्रीमती कान्ती देवी बालिका इंटर कॉलेज, बी॰एस॰ इन्टर कॉलेज, सयांरा-कौशाम्बी के॰एस॰ इंटर कॉलेज, कड़ा-कौशाम्बी धनपत सिंह इंटर कॉलेज, डोरमा-कौशाम्बी शारदा प्रसाद इंटर कॉलेज, कनवार-कौशाम्बी, श्री हलधर ऐकेडमी (सी॰बी॰एस॰सी॰ बोर्ड) इत्यादि विद्यालयों की स्थापना की।
क्षेत्र में उच्च शिक्षा पाने हेतु महाविद्ध्यालय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए 1 जुलाई 1998 को माननीय जी ने नगर पंचायत अजुहा में भगवान् बुद्ध के नाम से एक महाविद्ध्यालय की स्थापना की जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले उन हजारों छात्र/छात्राओं के लिए वरदान स्वरुप था। जिन्हें इसके लिए बहुत दूर-दूर जाकर अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था।
संथापक स्व॰ बाबु सिंह को अपने जीवन के प्रारंभिक काल से ही विभिन्न सामाजिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने अथक प्रयासों के फलस्वरुप सर्वप्रथम सन् 1975 में “हलधर विद्या मंदिर” नामक पाठशाला के रूप में जिस रुपी दीप को प्रज्ज्वलित किया था। वह दीप अब पूर्ण रूप से विकसित होकर दीपमाला बन चुका है जिसकी ज्ञान ज्योति में हजारों छात्र/छात्राएं प्रतिवर्ष लाभान्वित हो रहे हैं। उक्त विकास क्रम की विभिन्न अवस्थाओं में संस्थापक महोदय ने स्वयं अभावों में रहकर अपना संपूर्ण प्रयास रात दिन एक करके जारी रखा तथा एक क्रांतिकारी के रूप में अपनी व्यक्तिगत सुखसुविधाओं का परित्याग करके बहुत सी कठिनाइयों तथा बाधाओं के साथ सफलतापूर्वक सामना किया तथा जनपद कौशाम्बी को प्रदेश में शैक्षिक क्षेत्र में उच्च शिखर तक पहुंचाया।